इस खोज से बदल जाएगी ऑटिज्‍म पीड़‍ितों की दुनिया

इस खोज से बदल जाएगी ऑटिज्‍म पीड़‍ितों की दुनिया

सेहतराग टीम

ऑटिज्‍म यानी बच्‍चों में व्‍यवहार संबंधी वह बीमारी जो बच्‍चों के सामाजिक मेलमिलाप को प्रभावित करता है और उसकी सामाजिक जिंदगी को सही से विकसित नहीं होने देता। आमतौर पर इस बीमारी का पता कम उम्र में नहीं लग पाता जिसके कारण माता-पिता समय रहते बच्‍चों को सही इलाज नहीं दिला पाते और उम्र बढ़ने के साथ इसके ठीक होने की उम्‍मीद धूमिल होने लगती है। इस बीमारी को आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसआर्डर’ यानी एएसडी कहा जाता है।

क्‍या है नई खोज

मगर अब वैज्ञानिकों ने बच्चों में आटिज्म का पता लगा सकने वाले नए रक्त और मूत्र परीक्षण की पद्धति तलाश ली है जिससे बेहद कम उम्र में इस बीमारी का पता चल पाएगा और उनका इलाज भी जल्‍द शुरू हो पाएगा। ब्रिटेन के वारविक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपनी तरह के इस पहली जांच प्रणाली तैयार की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि उनकी इस खोज से इसका काफी पहले पता लगाया जा सकता है और इसका इलाज शुरू हो सकता है।

कैसे काम करता है

इन वैज्ञानिकों ने ऑटिज्‍म पीड़‍ित बच्‍चों के रक्‍त प्‍लाजा में मौजूद प्रोटीन का अध्‍ययन करने पर पाया कि ऐसे बच्‍चों में ऑक्‍सीडेशन मार्कर डिटायरोसाइन (डीटी) का स्‍तर सामान्‍य से बहुत अधिक होता है। इसके अलावा कुछ चुनिंदा शुगर मोडिफाइड कंपाउंड्स जिन्‍हें एड्वांस्‍ड ग्‍लाइकेशन एंड प्रोडक्‍ट्स (एजीइस) कहते हैं, उसका स्‍तर भी ज्‍यादा होता है। नई जांच में इन्‍हीं दोनों चीजों का पता लगाकर यह पाया जाता है कि बच्‍चे को ऑटिज्‍म है या नहीं।

बच्‍चों पर बीमारी का कैसा असर

एएसडी मरीज के सामाजिक व्‍यवहार को प्रभावित करता है और इसके लक्षणों में बोली का लड़खड़ाना, एक जैसी हरकत बार-बार दोहराना, अतिसक्रियता दिखाना, भयभीत होना और नए माहौल में ढलने में मुश्किल आना शामिल हैं। बीमारी के शुरुआती चरण में इसके लक्षण अलग-अलग तरह के हो सकते हैं और इसी लिए तब इसका पता लगाना भी मुश्किल होता है। स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में इस खोज को मील का पत्‍थर माना जा रहा है क्‍योंकि इसके जरिये अब बहुत ही छोटे बच्‍चों में ऑटिज्‍म का पता चल जाएगा और उनका उसी के अनुरूप इलाज शुरू किया जा सकेगा।

(द टाइम्‍स ऑफ इंडिया से इनपुट के साथ)

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